खबर इंडिया डेस्क.भोपाल। भारतीय जनता पार्टी विश्व की एकमात्र ऐसी पार्टी है अनुशासन के मामले में पहचानी जाती है। भाजपा का केंद्रीय संगठन फैसले लेने में माहिर है। चुनाव से तीन महीने पहले मध्यप्रदेश की 39 और छग की 21 विधानसभा सीटों पर उसने अपने प्रत्याशियों के नाम तय कर सबको चौंका दिया है। भाजपा की इस पहली सूची ने अन्य विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों को टेंशन दे दिया होगा जो अपनी दावेदारी जता रहे हैं। टेंशन का कारण यह है कि पहली सूची में भाजपा ने न तो कार्यकर्ताओं से रायमशविरा किया और न ही स्थानीय स्तर पर पैनल लिस्ट बनाई जो अमूमन भाजपा की टिकट वितरण की प्रक्रिया रही है।

    हर राज्य में भाजपा ने अलग-अलग रणनीति अपनाई लेकिन मध्यप्रदेश के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के अगले दिन टिकटों की घोषणा कर पार्टी ने नया उदाहरण पेश किया है। आपको बता दें भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक चुनाव घोषित होने के बाद ही होती है लेकिन यहां करीब तीन महीने पहले ही यह बैठक कर ली गई। एमपी को लेकर बात यह उठ रही है कि भले ही भाजपा ने उन 39 विधानसभा सीटों पर टिकट घोषित किए जिसपर एक या दो बार से पार्टी को हार मिली हो लेकिन जो चेहरे मतदाताओं के सामने पहुंचाए गए हैं उनका चयन किस तरह किया गया? इसमें यह कहा जा रहा है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व वाली एक टीम पहले ही गुपचुप तरीके से काम कर रही है और उसने इनके नामों की सूची तैयार करके केंद्रीय चुनाव समिति के समक्ष रख दी। एक बात यह भी आ रही है कि पार्टी ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन मंत्री हितानंद को ही टिकट तय करने को लेकर जिम्मेदारी सौंप दी जिनके द्वारा ये नाम भेजे गए थे।

    खैर म.प. और छत्तीसगढ़ में पहली सूची तो निकाल दी गई लेकिन अगली सूचियों में प्रत्याशियों के नाम किस आधार पर जोड़े जाएंगे इसे लेकर संशय की स्थिति बन गई है। जो कार्यकर्ता अपनी दावेदारी पेश कर रहा है वे अपना परफार्मेस कैसे देंगे यह सोच का विषय बन गया है। यदि पार्टी खुद ही गुपचुप तरीके से प्रत्याशियों को टटोल रही है तो उसका भी कोई आधार तो बना होगा। आधार की बात इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इन दोनों प्रदेशों के रिजल्ट भविष्य के कार्यकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त करेंगे यानी इतिहास से वर्तमान को कैसे सुधारा जा सकता है इसकी सीख भविष्य के कार्यकर्ताओं को मिलेगी।

जीती हुई सीटों पर बदले जा सकते हैं नाम 
भाजपा के गलियारों में चर्चा है कि भाजपा अपनी जीती हुई सीटों पर जबरदस्त मंथन के बाद ही नाम तय करेगी। इसके पीछे कारण सालों से दिखने वाले एक चेहरे से मतदाताओं का रुझान कम होना है। मप्र में ऐसी कई सीटें हैं जहां दशकों से एक ही उम्मीदवार या उसका परिजन चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में नए कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाता है जिससे वे भी पूरी शिद्दत से काम नहीं कर पाते हैं। मिली जानकारी के अनुसार पार्टी ऐसे उम्मीदवारों को अन्य विधानसभा में शिफ्ट कर सकती है या आराम दे सकती है। संभव है कुछ ऐसे चेहरों को लोकसभा का प्रत्याशी भी वह बना सकती है।