खबर इंडिया डेस्क.भोपाल। बीमारी के नाम पर अवकाश लिए बिना ही करोड़ों रुपए के फर्जी बिल लगाने वाले मंत्रालय के एक हजार से ज्यादा कर्मचारियों पर कार्रवाई हो सकती है। इन कर्मचारियों ने बीमारी के नाम पर करीब 30 करोड़ रुपए का गलत तरीके से आहरण किया था। यह मामला तब उजागर हुआ जब मार्च के विधानसभा बजट सत्र के दौरान चौरई से कांग्रेस विधायक सुजीत मेरसिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से सवाल पूछा था, जिसके जवाब में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जानकारी संधारित किए जाने की सूचना दी थी। अब विधानसभा का सत्र नजदीक है ऐसे में विभाग इस घोटाले से जुड़े प्रश्र के उत्तर में उन कर्मचारियों की सूची तैयार कर रह है जिन्होंने सरकार को चूना लगाया है। मंत्रालय के सूत्रों से पता चला है कि 750 से ज्यादा मंत्रालयीन कर्मचारियों के नाम मेडिकल बिल घोटाले की सूची में चढ़ा दिए गए हैं और जीएडी इन बिलों की जांच कर रहा है। यह पूरा मामला जनवरी 2020 से अक्टूबर 2022 के बीच लगे बिलों के आहरण का है।   
    सूत्रों का कहना है कि बीते 3 साल में यह रकम 30 करोड़ रुपए है और यह गोरखधंधा कई सालों से चल रहा है। यदि इसकी गहराई से जांच की जाए तो घोटाले की राशि तिगुनी हो सकती है। इतनी बड़ी संख्या में दोषी कर्मचारियों से वसूली के लिए शासन आने वाले समय में कार्रवाई करेगा और जल संसाधन विभाग की तरह किसी जांच एजेंसी को इसका जिम्मा दे सकता है लेकिन सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार दोषी कर्मचारियों की वेतनवृद्धि रोके जाने पर विचार चल रहा है।

हरी महीने लगे 25 हजार से अधिक के बिल
विधानसभा के बजट सत्र में सुजीत मेर सिंह के द्वारा उठाए गए सवाल में यह पूछा गया था कि 25 हजार से अधिक के बिल लेने वाले कर्मचारियों की संख्या कितनी है। सवाल में पूछी गई अवधि में मंत्रालय के करीब 750 से ज्यादा कर्मचारी ऐसे हंै जिन्होंने हर महीने 25 हजार से ज्यादा का मेडिकल बिल लगाकर गलत तरीके से राशि ली है। 

जल संसाधन विभाग के कर्मचारियों को हो चुकी है जेल 
साल 2011 में जल संसाधन विभाग में भी इसी तरह की गड़बडी पता चलने पर क्राइम ब्रांच में शिकायत की गई थी जिसके बाद प्रकरण में कार्रवाई हुई। जांच में पता चला कि कर्मचारियों के द्वारा चिकित्सक की फर्जी सील बनवाकर उसके जाली हस्तागक्षर से बिल बनाकर राशि आहरित की जाती थी । न्याीयालय के समक्ष संबंधित चिकित्साकों की गवाही से यह पता लगा कि उनके फर्जी हस्तारक्षर से बिल पास किए गए। जिसके बाद वर्ष 2022 में जिला न्यायालय ने 19 कर्मचारियों को दोषी पाते हुए उन्हें तीन साल की सजा सुनाई थी और 10 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था।